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Friday, August 17, 2012

सुबह की सैर


हम सुबह की सैर के लिए पार्क में पहुंचे ही थे कि किसी ने पीछे से आवाज़ लगाई-" क्या पीयूष बाबू कैसे हैं?" मैंने मुड कर देखा तो 'नेताजी' दांत निपोरे खड़े थे. नेताजी को देखते ही एकदम से गणेश जी याद आते हैं. आपको कुछ मिल रहा हो या नहीं मगर हाथ हमेशा आशीर्वाद की मुद्रा में रखेंगे.दूसरा हाथ हमेशा लड्डू खाने को तत्पर.सर बडा सा और उस से कई गुना बड़ा पेट.आजकल इनकी ही पार्टी की सरकार है इसीलिए दांत निपोर रहे थे.
हमने सोचा कि ये हमारा इंटरव्यू लें इस से पहले ही हम इन्हें चुप करा देते हैं. हमने तपाक से पूछा-" सुना है आपकी सरकार गरीबों को मोबाइल बांटने वाली है?
"सही सुना है" नेताजी बोले
 आपको नहीं लगता कि लोगों को रोटी की ज्यादा ज़रूरत है?" हमने सवाल दागा
नेताजी अपनी दांत निपोरू मुद्रा में बोले-" अरे पीयूष बाबू जो इस दुनिया में जिंदा है और जिंदा रहना चाहता है वो रोटी तो किसी भी तरह जुटा ही लेगा. मांग के या छीन के. उसकी फिकर क्या करना?" 
"हाँ मगर ऐसे तो वो मोबाइल भी प्राप्त कर सकता है." मैंने कहा.
नेताजी जैसे इस सवाल के लिए पहले से ही तैयार थे-" नहीं बिलकुल नहीं. आप इतने समझदार हो कर भी ऐसी बात कैसे कर सकते हैं? आपसे कोई मोबाइल मांगेगा तो आप उसे देंगे?
-"नहीं" मैंने कहा. " मगर मोबाइल छीना तो जा सकता है?"
नेताजी के चेहरे पर चकित होने का भाव आ गया-" अभी तो आपने कहा कि लोगों को रोटी की ज़रूरत है. भूखा आदमी कभी मोबाइल नहीं छीन सकता.क्या करेगा वो उसका? खायेगा?"
मैं हडबडा सा गया. फिर भी शांत भाव से कहा-" खायेगा नहीं मगर वो उसे बाज़ार में बेच तो सकता है पैसों के लिए?"
नेताजी ने दांत निपोर लिया-" इसीलिए तो हम मोबाइल बाँट रहे हैं."
"मतलब?" मैंने अज्ञानियों की तरह पूछा.
नेताजी बोले-" गरीब बेचारा किसी से मोबाइल छीन भी ले तो उसे रख नहीं सकता.उसे बेच देना ही उसकी नीयती है."
"बेच तो वो सरकारी मोबाइल भी सकता है." मैंने सीरिअस हो कर कहा.
"सरकारी मोबाइल नहीं है वो गरीबों का मोबाइल है. उनके हक़ का मोबाइल" नेताजी थोड़ी ऊंची आवाज़ में बोले.
मैंने थोडा डरते हुए कहा-" जी वही वही. गरीबों का मोबाइल. बेच तो वो अपना मोबाइल भी सकते हैं"
नेताजी लगभग डपटते हुए बोले-" तो कोई अपना मोबाइल बेचना चाहे तो आपको क्या तकलीफ है?अब आप क्या इसके लिए भी अनशन करेंगे? आप जैसे लोग ही हैं जो इस देश में गरीबों का हक़ छीन रहे हैं....."
मुझे लगा अब इनसे और आगे बात की तो ये कहीं मार ना बैठें. वैसे भी उनके बौद्धिक ज्ञान की परीक्षा ले कर मुझे कुछ नहीं करना था. मैंने उन्हें नमस्ते किया और घर की ओर चल पड़ा.

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