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Friday, February 7, 2014

तुम्हारा नाम…

हथेली पर-
तुम्हारा नाम…

पूर्ण विराम!

Thursday, December 5, 2013

जातक कथाएँ-4

बहुत पहले की बात है। हमारे-आपके दादा,परदादा के भी पहले की बात। (डायनासॅार के समाप्त होने के बाद की)। किसी शहर में एक आदमी रहता था जो स्वयं को पंडित बताता था। वह रोज़ सर पर चंदन तिलक लगाता, पोथी-पतरा लेता और किसी सड़क के किनारे बैठ जाता। वहाँ से गुज़रने वाले लोगों में से वो किसी एक को अपने पास बुलाता और उसे उसका भविष्य बताता।वो उसे बताता कि 'उसके हाथ में कितनी अच्छी रेखाएँ हैं, वो क्या है और असल में क्या बन सकता है, वो यूँ तो जीवन में बहुत खुश है लेकिन उसे पता नहीं कि उसे इससे ज़्यादा मिल सकता है और इन सारी उन्नतियों और खुशियों के बीच है कोई ग्रह जिसकी शांति करवाने से वह व्यक्ति दुनिया का सबसे संतुष्ट व्यक्ति बन सकता है।' अब वह व्यक्ति जो अब तक अपनी ज़िन्दगी से संतुष्ट और खुश था, वह बेचैन हो उठता है। अब वह 'क्या से क्या ' बनना चाहता है (बस उसे पता नहीं है कि क्या बनना चाहता है,ख़ैर! जिस दिन बनेगा उस दिन जान ही जाएगा)। इस प्रकार एक पोंगा पंडित की बातों में आकर वह व्यक्ति जो अपने जीवन से संतुष्ट था वह 'और' पाने की लालच में पूर्णतः असंतुष्ट जीवन जीने लगता है। वो जो अब तक जीवन से खुश था, वह जीवन को दु:खों की खान मानने लगता है। जीवन में इस तरह के कई पोंगाओं से हम सबका पाला पड़ता है जो या तो दूसरों को 'और' पाने का लालच दिखाते हैं या बाबाजी का ठुल्लू पाने के पीछे जीवन भर दौड़ते रहते हैं।

कथा यहीं समाप्त नहीं होती। इस पोंगा ने पुनः इस पापपूर्ण कलियुग में जन्म लिया। पहला जो स्वयं को पंडित बताता था उसने इस जन्म में इस प्रकार की पोंगापंथी का विरोध किया। उसने हर उस बात का विरोध किया जो समाज को पीछे की ओर धकेलती थी। उसने महिलाओं को बताया कि तुम अपने परिवार वालों से संतुष्ट हो, तो तुम जानती नहीं हो कि तुम क्या कर सकती हो मगर तुममें और इस 'क्या' के बीच है कोई ग्रह। वो ग्रह पिता, भाई, पति कोई भी हो सकता है इनका विरोध करना अत्यंत आवश्यक है। उसने विद्यार्थियों को बताया कि शिक्षक किस प्रकार उन्हें मूर्ख बना रहे हैं, शिक्षकों को बताया कि किस प्रकार कॅालेज प्रशासन उन्हें मूर्ख बना रहा है। विद्यार्थी भी क्या से क्या हो सकते हैं और शिक्षक भी क्या से क्या ही हो सकते हैं। ये बातें उस महान पंडित से पहले किसी को पता नहीं थी। अब छ: महीने विद्यार्थियों ने कॅालेज बंद करवाया फिर अगले छः महीने शिक्षकों ने। यही बातें उसने मजदूरों, रिक्शा वालों, ठेला वालों, सुनार, लुहार, मोची... जो भी सामने आता गया, सबको बताईं कि किस प्रकार उन्हें 'क्या से क्या ' बनना चाहिए और कौन है जो ग्रह बनकर उनके और 'क्या' के बीच आ रहा है। इस प्रकार असंतुष्टों का एक पूरा समाज खड़ा हो गया जिसे जीवन के हर पहलू से, समाज के हर अंग से शिकायत रहती है। वो सब 'क्या से क्या' बन जाना चाहते हैं और समाज को भी वही बनाना चाहते हैं।

पोंगापंथ अब रूप बदल कर लालपंथ के नाम से जाना जाता है।

Tuesday, September 3, 2013

जातक कथाएँ-3

एक जंगल में एक शेर हुआ करता था. जंगल में लोकतंत्र था. जंगल के अन्य जानवर बरसों से वोट देकर उसी शेर के परिवार के सदस्य को राजा चुनते थे. इस प्रकार वो भी राजा था. चूँकि लोकतंत्र में सबको बराबरी का हक होता है, हर जानवर किसी भी जानवर को मार के खा सकता था. गीदड़ चाहे तो हाथी को मार के खा ले और बिल्ली चाहे तो शेर को. कोई रोक-टोक नहीं थी. हाँ शेर चूँकि राजा था तो उसे शिकार करना नहीं पड़ता था, उसके लिए स्वयं किसी जानवर को बलि देनी पड़ती थी. और जैसा कि लोकतंत्र में होता है, सब स्वेच्छा से उस शेर के लिए बलि देते थे. किसी को बलि देने में कष्ट होता तो राजा के सैनिक बलि देने में उसकी मदद भी करते थे. लोकतंत्र था, सबकी बारी बंधी हुई थी.

एक दिन एक बूढ़े खरगोश ने जो विपक्षी दल का था, संसद में ही घोषणा कर दी कि वो राजा के लिए स्वयं की बलि देगा. अफरा-तफरी मच गयी. सब जानते थे वो खरगोश बहुत बुद्धिमान है. कुछ लोगों ने तो साजिश को सूंघ भी लिया. मीडिया वाले उसकी तरफ दौड़े. टी वी पर उसके इंटरव्यू आने लगे. खरगोश ने अगले दिन सुबह ग्यारह बजे का टाइम घोषित कर दिया था.

अगला दिन हुआ. टी वी के कैमरे चारों तरफ लगे थे. सारा प्रोग्राम लाइव टी वी पर आ रहा था.मगर खरगोश गायब! एक घंटा बीता, दो घंटा बीता, धीरे-धीरे शाम हो गयी. खरगोश गायब. शेर को ये बात जंची नहीं. उसे गुस्सा भी आ रहा था. खरगोश के चक्कर में वो सारे दिन भूखा रहा था. और से लग रहा था विपक्षी दल के उस खरगोश ने उसे बेवकूफ बनाया. अभी वो सैनिकों को आदेश देने ही वाला था कि सामने से खरगोश आता हुआ दिखा. उसे देखते ही शेर दहाड़ा, गुस्से में भर कर खरगोश के गायब होने का कारण पूछा. खरगोश ने बताया- कि "एक दूसरा शेर जंगल में आ गया है जो सारे खरगोशों को खा जा रहा है और मैं किसी तरह बच-बचा कर आया हूँ." शेर को ये सुन कर बहुत गुस्सा आया. उसने खरगोश से उस दुसरे शेर का पता पूछा. खरगोश ने उसे एक कुँए का पता बताया.

शेर अपने सैनिकों के साथ उस खरगोश को लेकर उस कुएं तक पहुंचा. वहां कोई नहीं दिखा. शेर ने फिर पूछा तो खरगोश ने बताया कि दूसरा शेर कुएं के अन्दर घात लगा कर बैठता है. शेर समझ गया. उसने कुएं में झाँक कर देखा. वहाँ पानी में उसे अपनी परछाईं दिखी. उसने कहा- " मैं तुम्हारी कड़ी निंदा करता हूँ. आगे ऐसा किया तो सख्त कार्यवाही की जायेगी" ऐसा कहकर वो मुड़ा और खरगोश को मार कर खा गया.

Monday, September 2, 2013

जातक कथाएँ-2

बहुत पहले की बात है सदियों पहले की. आदमी जंगल में रहता था. अलग-अलग मोहल्ले तब भी बंटे थे. एक मोहल्ले से अक्सर आवाज़ आती-" हम कालुओं को छोड़ेंगे नहीं.मार डालेंगे उन्हें" अक्सर उनके मोहल्ले में रात को मशाल जलती दिखती, मार-काट की आवाज़ भी आती. बाकी मोहल्ले के लोग इन सब घटनाओं से बहुत डरे रहते थे, एक दिन दुसरे मोहल्ले का एक बच्चा गलती से उस डरावने मोहल्ले में चला गया. वहाँ उसने जो देखा उस से वो डर गया और भागा-भागा अपने मोहल्ले आया और जो बात बतायी वो सुन कर लोगो को अचानक सारी सच्चाई समझ आ गयी और वो हँसते-हँसते दोहरे हो गए.बात जंगल में जंगल की आग की तरह फ़ैल गयी.अब उस 'खूंखार' मोहल्ले वाले लोगों पर सारे जंगल के लोग हँसते और जब भी उस मोहल्ले का कोई दीखता उसे मूर्ख कहकर चिढाते.बात ये थी की उस 'खूंखार' मोहल्ले वाले सभी लोग 'भ' को 'क' बोलते थे. 'कालुओं' को मारने से उनका तात्पर्य भालुओं से था.

उस मोहल्ले वाले लोग आगे चलकर कम्युनिस्ट के नाम से जाने गए. वो आज 'क्रां(भ्रां)तियाँ फैला रहे हैं.

Wednesday, August 28, 2013

ये केन्द्र का मामला है

-अब आप भोजन बँटवाएंगे?
-जी
-आपकी राज्य सरकार के पास तो पैसों की कमी है?
-आपने शायद सुना नहीं,नीयत अच्छी होनी चाहिए।
-सुना मैंने, मगर भूखा आदमी नीयत तो नहीं खा सकता ?
-आप क्या चाहते हैं सरकार रोटी बेले?
-नहीं,मगर सरकार संसाधन उपलब्ध करवा सकती है।
-बिल्कुल करवा सकती है।
-तो क्यों नहीं करवाती?
-मुझे नहीं पता। केंद्र ने कानून लागू किया है।ये केन्द्र का मामला है।
-तो आप केंद्र से बात क्यों नहीं करते?
-किया था,केन्द्र हमारी नहीं सुनता।
-तो आपने ऐसी सरकार को समर्थन क्यों दिया है जो आपकी बात नहीं सुनती?
-हम प्रतिबद्ध हैं। हम सेकुलरिज़्म की रक्षा कर रहे हैं।
-मगर आपको नहीं लगता भूख ज़्यादा बड़ी समस्या है?
-भूख एक व्यक्तिगत समस्या है।
-वो कैसे?
-आदमी को भूख अपने पेट में लगती है और पेट व्यक्तिगत अंग है।
-तो सम्प्रदाय भी व्यक्तिगत विचार है।
-नहीं। सम्प्रदाय एक समूह का होता है। समूह साम्प्रदायिकता फैला सकता है। ये एक वैश्विक समस्या है।
-भूख से भी कई प्रकार की सामाजिक समस्याएं पैदा हो सकती हैं।
-जैसे?
-जैसे चोरी। भूखा व्यक्ति किसी और की रोटी चुरा कर भाग सकता है।
-बिल्कुल नहीं।जो भाग सकता है वो भूखा नहीं हो सकता।
-मगर भूख आदमी से कुछ भी करा सकती है।
-हाँ मगर भूखा आदमी भाग नहीं सकता। जो आदमी कुछ भी चुरा कर भाग रहा है वो चोर है।उसे हम जेल में डालेंगे।
-बहुत फासीवादी विचार हैं आपके तो?
-हम कानून को मानने वाले हैं। कानून ऐसा नहीं कहता।
-और कानून क्या कहता है?
-कानून कहता है कि जिसने चोरी की वो चोर है उसे जेल में डालो। और अब कानून ये भी कहता है कि भूखे को भोजन दो।
-मगर अभी तो आपने कहा कि भूख व्यक्तिगत समस्या है। व्यक्तिगत समस्या के लिये कानून क्यों?
-हमें नहीं पता।केन्द्र ये कानून लाई है। ये केन्द्र का मामला है।

Saturday, August 24, 2013

जातक कथाएँ -1

-बहुत पहले की बात है
-छिपकलियों का एक झुण्ड हुआ करता था.
-वो सब खुद को बाकी छिपकलियों से उच्च दर्जे का और अलग समझती थीं.
-वैसे वो उन्ही दीवारों पर रेंगती थीं जिन पर बाकी 'मूर्ख' छिपकलियाँ रेंगती थीं.
-उन्हें लगता था दीवार उनके पैरों पर टिकी हुई है.
-वो सोचती थीं, वो हट गयीं तो दीवार गिर जायेगी.
-समय बदला
-वो छिपकलियाँ खुद को क्रांतिकारी मानने लगीं.
-अब छिपकलियों के उस झुण्ड को 'कम्युनिस्ट्स' के नाम से जानते हैं.

Thursday, August 22, 2013

सरकार ऐसा नहीं मानती

सुना फ़ाइलें गायब हो गईं?
-आपको सरकार का धन्यवाद करना चाहिए
-जी?
-सरकार ने आपके मौलिक अधिकार की रक्षा की है।आप सुन सकते हैं।
-मगर फ़ाइलों का क्या?
-आप सही या गलत कुछ भी सुन सकते हैं। सरकार को धन्यवाद कहिये।
-मतलब आप कहना चाहते हैं कि मैंने ग़लत सुना है?
-मैं सिर्फ ये कह रहा हूँ कि सरकार ऐसा नहीं मानती।
-मगर सीबीआई ने तो मान लिया है?
-सीबीआई सरकार नहीं है।
-हाँ! मगर सरकार का अंग तो है ही?
-सीबीआई सरकार नहीं है।
-मंत्री जी ने भी माना है!
-मंत्री जी सरकार नहीं हैं।
-क्या?
-मंत्री जी सरकार नहीं हैं।
-तो सरकार कौन है?
-लोकतंत्र में सिर्फ जनता ही सरकार है।
-मैंने जनता को भी ऐसा कहते सुना है!
-लोकतंत्र है। वो विपक्ष की जनता होगी।
-आप ऐसा दावा कैसे कर सकते हैं?
-मैं कहाँ दावा कर रहा हूँ? दावा तो आप कर रहे हैं। मैं तो सिर्फ ये कह रहा हूँ कि सरकार ऐसा नहीं मानती!

Thursday, July 18, 2013

आज़ादी

हसरत-ए-आज़ादी की ये अच्छी ताबीर है
वहाँ तक आज़ाद हूँ मैं जहाँ तक ज़ंजीर है

बहुत संजो के रक्खा है इन्हें गुल्लक में इस दिल के
तुम्हारी याद के सिक्के मेरी पहली कमाई हैं

Thursday, November 8, 2012

हम


हम धर्म को बचायेंगे
दंगे करवाएंगे

बेटे की शादी
अपनी दीवाली
(आई है लक्ष्मी)
पैसे नहीं लाई?
बहू को जलाएंगे

नवरात्र चल रहे हैं
करो देवी की पूजा
क्या? मर गया है बच्चा?
कोई तो है डायन
अफवाह उड़ायेंगे

कोई लुट रहा है?
हमें क्या है उस से?
रात हो गयी है
हम तो सो जायेंगे