वो कुछ तो मुझसे छुपा रहा है
नयी कहानी बना रहा है
जो शख्स मेरा खुदा रहा था
मेरी खुदी को मिटा रहा है
मैं खुद को कब से बचा रहा हूँ
वो शाख कब से हिला रहा है
शराब सोच के पी रहा हूँ
ज़हर वो मुझको पिला रहा है
मैं अब भी थोड़ा सुलग रहा हूँ
वो राख मेरी उड़ा रहा है
gulzar saab ki poetry se kafi milti julti hai..!!
ReplyDeletepar acchi hai...
keep it up pu..
bahut hi dilchasp gazal.. maza aaya padhkar..
ReplyDeletelikhte raho bandhuwar..
bahut khub piyushji, shaandar aur bilkul aapki belaaus, bebaak,kintu suniyantrit rachna..waah......
ReplyDeleteRaakh udti par kar baar baar sinhran hoti hai, gehri chaap chodtey ho, shabdo sey man ko tatoltey ho.
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