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Saturday, December 16, 2006

अधूरी बात पूरी रात

कहता हूँ एक बात
आज की रात
जानम! हो सके तो सोना मत
सुन सको गर बात मेरी
है छुपी जो बात में
जानम!हो सके तो रोना मत

ऐसी ही एक रात
कहने चला जब मैं तुमसे
ऐसी ही एक बात
एक बूँद सी टपक पड़ी थी
हथेली पर मेरे
जो आयी थी आँखों से तुम्हारे
आज तक
माफ़ नहीं कर पाया हूँ मैं
उस पल
उस बूँद के लिए,
अपने आप को

सच कहूं..
कह नहीं पाया हूँ अब तक
जो सोचता हूँ मैं
और जो कह गया अभी
सोचा नहीं था कभी

आज जब
कहने चला तो
फिर से सो गया तू
ख्वाब में फिर गो गया तू
रह गया मैं
अधूरी बात
पूरी रात!!

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